सेना में डॉक्टर रहे वेंकटस्वामी ने खोला मुफ्त आंखों का अस्पताल, लाखों लोगों को अंधेपन से बचाया

New Delhi : हमारी 6 इंद्रियां जिनसे हम ज्ञान प्राप्त करते हैं उनमें से सबसे महत्वपूर्ण आंख होती है। डॉक्टरों का मानना है कि हम 70 से 80 प्रतिशत तक सारे काम देख कर करते हैं, यही कारण है कि हमारे जीवन में आंख का महत्व किसी भी इन्द्री से ज्यादा होता है। अब उन लोगों के बारे में सोचिए जो पैदा तो ठीक-ठाक होते हैं लेकिन आंख संबंधी किसी बिमारी हो जाने और फिर सही समय पर सही इलाज न मिल पाने के कारण कम उम्र में ही अपनी आंखों की रोशनी खो देते हैं। भारत में ऐसे उदाहरणों की भरमार है। ऐसी गंभीर समस्या पर देश में सबसे पहले जिस व्यक्ति का ध्यान गया, आज हम उसी महान व्यक्ति के बारे में आपको बताएंगे। जिसने पहले तो डॉक्टर बन भारतीय सेना में अपनी सेवा दी और फिर रिटायरमेंट के बाद अपने बूढ़े शरीर से जुट गए दूसरों की जिंदगी को अंधेरे से बचाने और रौशनी से जगमगाने में। इनका नाम है डॉ. वी यानी गोविंदप्पा वेंकटस्वामी।

गोविंदप्पा वेंकटस्वामी यानी डॉ.वी ये नाम आपने भले ही न सुना हो लेकिन केरल में इस नाम को भगवान का दर्जा दिया गया है। वो आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन अपने जीवन के रहते जो मूल्य वो स्थापित करके चले गए उससे आज भी लाखों लोगों का उद्धार हो रहा है। उनका जन्म एक किसान परिवार में 1 अक्टूबर 1918 को तमिलनाडु के वडमालापुरम में हुआ। वह हर दिन दो किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाते थे। उस समय असमय होने वाली मौतों ने उन्हें बचपन में ही डॉक्टर बनने के प्रभावित किया। जब वो किशोर हुए तो उन्होंने गांधी जी को अपना आदर्श माना और संकल्प किया कि वो भी अपना जीवन जन कल्याण में लगा देंगे। वेंकटस्वामी ने 1938 में अमेरिकन कॉलेज, मदुरै से रसायन विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। 1944 में उन्होंने मद्रास के स्टेनली मेडिकल कॉलेज से अपनी मेडिकल की डिग्री प्राप्त की, इसमें उन्होंने टॉप किया था। 1951 में उन्होंने मद्रास के सरकारी नेत्र रोग अस्पताल में नेत्र विज्ञान में एमएस के साथ क्वालीफाई किया।
वह मेडिकल स्कूल में था जब उनके पिता की मृत्यु हो गई, जिससे अब परिवार की जिम्मेदारी उन्हें अपने सिर लेनी पड़ी। अपनी मेडिकल डिग्री प्राप्त करने के बाद, वेंकटस्वामी ने 1945 से 1948 तक भारतीय सेना के साथ एक चिकित्सक के रूप में कार्य किया। इसी दौरान उन्हें गठिया रोग हुआ जिसने उन्हें काफी तोड़ कर रख दिया। वो दो साल तक कुछ नहीं कर पाए। उन्हें अब लगता था कि अब जिंदगी में कभी भी वो सर्जरी नहीं कर पाएंगे। वह उस समय 30 साल के थे। 1956 में, उन्हें गवर्नमेंट ऑफ मदुरैय मेडिकल कॉलेज में नेत्र रोग विभाग का प्रमुख नियुक्त किया गया और मदुरैय के सरकारी एर्स्किन अस्पताल में नेत्र सर्जन। उन्होंने 20 साल तक इन पदों पर काम किया
उन्होंने 1966 में दृष्टिबाधितों के लिए एक पुनर्वास केंद्र और 1973 में एक नेत्र सहायक प्रशिक्षण कार्यक्रम की स्थापना की। अपने दैनिक ​​कार्य में, वेंकटस्वामी ने व्यक्तिगत रूप से एक लाख से अधिक सफल आई सर्जरी की। विल्सन के समर्थन के साथ, वेंकटस्वामी ने मदुरैय में भारत का पहला आवासीय पोषण पुनर्वास केंद्र भी शुरू किया, जहाँ संभावित रूप से दृष्टिहीन विटामिन ए की कमी वाले बच्चों को इलाज किया जाता था, जबकि उनकी माताओं को यह प्रशिक्षण दिया गया था कि वे किस तरह से पोषण से भरपूर भोजन उन्हें दें। 1976 में 58 साल की उम्र में डॉ. वी. ने अरविंद आंखों के अस्पताल की स्थापना की। यहां दो तरह के वॉर्ड बनाए गए जहां एक में आर्थिक रूप से सक्षम लोगों का इलाज किया जाता था तो दूसरे में जो समर्थ हैं उनका भी। इस अस्पताल को उन्होंने 11 बेड से शुरू किया था और तब उनके परिवार में जितने डॉक्टर थे वो ही अस्पताल में सेवारत थे। आज यह आंखों का इलाज करने वाले अस्पतालों की विश्व की सबसे बड़ी श्रृंखला है। उनके अस्पताल में नेत्रहीन या अंधेपन की बीमारी से ग्रसित लोगों का बहुत ही कम खर्च पर इलाज किया जाता है।

डॉ. वी. अरविंद आई हॉस्पिटल्स के फाउंडर और पूर्व चेयरमैन थे। समाज के लिए किए गए उनके कामों को लेकर भारत सरकार ने उन्हें 1973 में भारत का चौथा सबसे बड़ा सम्मान पद्मश्री दिया। 7 जुलाई को 2006 को 87 साल की उम्र में उनका अवसान हो गया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *