देश को आजाद कराने में कई वीरांगनाओं का महत्वपूर्ण योगदान है। इसमें कल्पना दत्त का नाम भी शामिल है। कहते हैं कि कल्पना मात्र 14 साल की उम्र में भारत की आजादी में कूद पड़ी थी। कल्पना महज 14 वर्ष की थीं जब उन्हें चटगांव के विद्यार्थी सम्मेलन में भाषण देने का मौक़ा मिला। उनके इंकलाबी भाषण ने लोगों को कल्पना की निडरता और गुलामी के प्रति सोच का एहसास कराया। कल्पना ने अपने भाषण में कहा था, ‘अगर दुनिया में हमें गर्व से सिर ऊंचा करके जीना है तो माथे से गुलामी का कलंक मिटाना होगा। साथियों, अंग्रेजों के चंगुल से आजादी पाने के लिए शक्ति का संचय करो। क्रांतिकारियों का साथ दो। ब्रिटिशर्स से लड़ो.’
कल्पना दत्त का जन्म 27 जुलाई 1913 को चिट्टगौंग के श्रीपुर गांव में हुआ। ये जगह अब बांग्लादेश का हिस्सा है। यह वही दौर था जब अंग्रेजों से देश को आजाद कराने के लिए मुहिम तेज हो रही थी। गुलामी की फिजाओं में कल्पना दत्त बड़ी होती रहीं। उनके अंदर भी देश को आजाद कराने की ललक उठने लगी। स्नातक की पढ़ाई के दौरान कल्पना क्रांतिकारियों के बारे में भी पढ़ती रहीं।
सितंबर 1931 को कल्पना ने अपने साथियों के साथ हमला करने की एक तारीख मुकर्रर की। इसके लिए उन्होंने अपना भेष बदला। रिपोर्ट्स के मुताबिक, कल्पना ने लड़के के वेशभूषा में इस योजना को अंजाम देने वाली थीं। लेकिन कहीं से इसकी सूचना अंग्रेजों को हो गई। उन्होंने इससे पहले ही कल्पना को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन सबूत ना मिलने की बुनियाद पर उन्हें रिहा कर दिया गया।
कल्पना वेश बदलने और पुलिस को चकमा देने में माहिर थीं। वो घर से भागने में कामयाब रहीं और सूर्य सेन से जाकर मिलीं। अगले दो साल तक छिपकर अंग्रेजों से लोहा लेती रहीं। दो सालों के बाद अंग्रेजों को सूर्यसेन के ठिकाने का पता लग गया। 16 फरवरी 1933 को पुलिस ने सूर्यसेन को गिरफ्तार कर लिया लेकिन कल्पना अपने कुछ साथियों के साथ फिर से अंग्रेजों को चकमा देने में कामयाब रहीं और भाग गईं।
8 फरवरी 1995 में इस दुनिया से अलविदा कह दिया। देश ने एक जांबाज महिला को खो दिया था। कल्पना पर एक किताब ‘डू एंड डाई:चटगाम विद्रोह; लिखी गई। इनके ऊपर बॉलीवुड में ‘खेलेंगे हम जी जान से’ के नाम से फिल्म भी बनी जिसमें अभिनेत्री दीपिका पादुकोण ने इनका किरदार निभाया था। वहीं अभिषेक बच्चन भी मुख्य किरदार में थे।