New Delhi: मैं माया गूजर, अजमेर से 19 किलोमीटर दूर पदमपुरा गांव की रहने वाली हूं। बचपन में मुझे भी कुछ नहीं पता था। परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। पापा-मम्मी भी पढ़े-लिखे नहीं थे। मैं गांव के स्कूल में पढ़ने जाती थी। सिर्फ 8वीं तक ही गांव में स्कूल था। उससे आगे की पढ़ाई के लिए दूसरे गांव में जाना पड़ता है। गांव से बाहर लड़के तो पढ़ने जाते है, लेकिन लड़कियों को इसकी इजाजत नहीं है।
मुझे याद है मेरे टीचर्स कहते थे माया तुम पढ़ने में अच्छी हो। तुम कभी पढ़ाई मत छोड़ना। मैंने जब 8वीं की पढ़ाई पूरी की तब आगे पढ़ना चाहती थी। मैंने पापा से ये बात बताई। गांव के लोगों को पता चला तो उन लोगों ने हंगामा कर दिया।
पापा से कहा कि आप अपनी लड़की को गांव से बाहर पढ़ने मत भेजिए। इसे पूरे गांव का माहौल खराब होगा। पापा गांव के लोगों के दबाव में आ गए। वे चाहते थे कि मैं पढ़ूं, लेकिन गांव वालों के सामने मजबूर थे। उन्होंने मुझसे कहा कि माया मैं तुमसे प्यार बहुत करता हूं, लेकिन तुम्हें पढ़ा नहीं सकता। फिर मां ने साथ दिया। वे मेरे साथ एक मजबूत चट्टान की तरह खड़ी हो गईं।
मां ने पापा से कहा कि बेटी पढ़ने जाएगी। मेरी तरह ये अनपढ़ नहीं रहेगी। इसकी पूरी जिंदगी बाकी है। पढ़ नहीं पाई तो जीवन-भर इसे मेरी तरह चूल्हा-चौका करना पड़ेगा। गोबर थापना पड़ेगा। मैं ऐसा कभी होने नहीं दूंगी।
मैं स्कूल जाती थी और पढ़ाई करने के बाद सीधे घर लौटती। ना ज्यादा किसी से दोस्ती ना कहीं घूमने जाना, क्योंकि हर किसी की नजर मेरे ऊपर ही थी। आए दिन राह चलते लोग कमेंट करते थे। ताने मारते थे कि एक दिन फलां की बेटी भाग जाएगी।
12वीं करने के बाद मैंने ग्रेजुएशन में दाखिला लिया। फिर गांव की लड़कियों को भी मोटिवेट करना शुरू किया। उनके घर वालों को अवेयर करना शुरू किया, लेकिन वे लोग गांव से बाहर अपनी लड़की को भेजने के लिए तैयार नहीं हुए। कुछ लोग पढ़ाना भी चाहते हैं, तो उन पर बेटी के ससुराल वालों का दबाव होता है।
उनके ससुराल वालों का कहना है कि लड़की पढ़-लिख गई तो घर का काम कौन करेगा। हमें अपनी बहू से नौकरी नहीं करानी है। घर का काम करना है। खाना बनवाना है, झाड़ू-पोछा कराना है। आप हमारी बहू को बाहर मत भेजो पढ़ने के लिए।
इसके बाद एक NGO की मदद से मैंने गांव में ही एक सेंटर खोलकर लड़कियों को पढ़ाना शुरू किया। धीरे-धीरे लोग अपनी लड़कियों को पढ़ने के लिए भेजने लगे। इसे गांव का माहौल बदला। लोगों को पढ़ाई की वैल्यू समझ आने लगी, लेकिन अभी सब कुछ शुरुआती स्टेज में है। लोगों पर पुरानी कुरीतियां इतनी हावी हैं कि बदलने में वक्त लगेगा।