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पिता बंधुआ मजदूर, किसी से एक पैसे की मदद नहीं…भूख की तड़प झेल बेटे ने खड़ी की करोड़ों की कंपनी

New Delhi: भूख की वजह से पेट की जलन और कमजोरी की वजह से शरीर में दर्द मुझे आज भी याद है। मेरे पिता बंधुआ मजदूर थे। पैसों की इतनी कमी थी कि मां को तम्बाकू की फैक्ट्री में काम करना पड़ा। भूख से पेट में लगने वाली आग को मैं आज भी महसूस कर सकता हूं। ये कहानी है एक ऐसे गरीब परिवार में जन्में मधुसूदन राव की जिन्होंने अपनी मेहनत के दम पर सफलता की वो कहानी लिख डाली है जो आज मिसाल है। आज वो न सिर्फ करोड़ों की कंपनी के मालिक हैं बल्कि हजारों लोगों को रोजगार भी दे चुके हैं।

मधुसूदन के परिवार में कुल 10 लोग थे। माता-पिता और 8 बच्चे। माता-पिता दिहाड़ी में काम करते थे। जिस दिन काम में नहीं जाते उस दिन भूखे सोना पड़ता था। हमेशा फटे-पुराने और मैले कपड़े पहनते थे। हर समय नंगे पांव ही जाते थे। परिवार एक झोपड़ी में रहकर गुजर-बसर करता था। मधुसूदन हमेशा परेशान करते कि उनके माता-पिता आखिर करते क्या हैं?वो रोज इतने घँटे कहां जाते हैं। 18-18 घँटे मजदूरी करना कोई मामूली बात तो नहीं। जब वह बड़े हुए तो बातें समझ में आने लगी। उन्हें पता चला कि पिता एक जमींदार के पास बंधुआ मजदूर हैं। दिहाड़ी पर काम करते हैं। मां हर दिन फैक्ट्री जाती है और मजदूरी कर पैसे कमाती है। मां को भी दिहाड़ी मिलती है। ले देकर परिवार चलता था।

हालात ऐसे थे कि बड़ी बहन को छोटी उम्र में ही मां के साथ मजदूरी के लिए जाना पड़ता था। करीब 12 किलोमीटर पैदल चलकर जाते थे। घंटों मेहनत करते फिर पैदल ही वापस आते । इतनी मेहनत करने के बाद भी कई बार हमें भूखे ही सोना पड़ता था। तरह-तरह की कठिनाईयों, परेशानियों, अपमान के घूंट, गरीबी के थपेड़ों से भरे अपने बचपन की यादें ताजा करते हुए मधुसूदन राव कहते हैं- जब मैं छोटा था तब अपने माता-पिता को देख नहीं पाता था। वो दोनों सुबह काम पर चले जाते और रात को घर लौटते थे। वो जब घर पर होते तो मैं सो रहा होता। उन दिनों मुझे मां-बाप का प्यार नहीं मिला।

मधुसूदन ने सोशल वेलफेयर हॉस्टल से 12वीं की परीक्षा पास की। डिग्री हासिल करने के बाद नौकरी के लिए लाख कोशिश की लेकिन कामयाबी नहीं मिली। उन्होंने कहा- मैं चुप नहीं बैठ सकता था। मेरी पढ़ाई के लिए सभी ने बहुत तकलीफें झेलीं थी। त्याग किये थे। मां-बाप, भाई बहन सभी को लगता थआ कि डिग्री लेकर नौकरी करूंगा। रुपए कमाउंगा। मुझपर ही उम्मीदें टिकी थीं। मैं उन्हें निराश भी नहीं कर सकता था। ऐसी हालत में मैंने कुछ भी करके रूपए कमाने का फैसला लिया।

जैसे तैसे पैसे कमाकर उन्होंने एक-एक करके कंपनी खड़ी करनी शुरू की। मधुसूदन ने अपनी कामयाबी की कहानी को जिस तरह से आगे बढ़ाया और विस्तार दिया वो एक अद्भुत मिसाल है। आईटी से लेकर फूड प्रोसेसिंग तक अब उनकी कंपनी की धाक है। उनकी कामयाबी भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है

उन्होंने अपनी इस कामयाबी पर अपने माता-पिता को श्रेय दिया है। उनका कहना है कि मेरे माता पिता ही मेरी प्रेरणा है। मैंने उन्हें हर दिन 18 घंटे काम करते देखा है। मैं भी उन्हें की तरह हर दिन 18 घँटे काम करता हूं। मैं नहीं चाहता था कि मेरी अगली पीढ़ी भी मेरी तरह दर्द झेले। मैं गांव से गरीबी हटाना चाहता हूं। परिवार में अगर एक आदमी भी काम करे तो परिवार गरीबी से उभर सकता है। मैं कुछ बन गया तो मेरे परिवार के सभी लोग संपन्न हो गए। एक वक्त था जब हम सभी झोपड़ी में रहते थे, आज हमारे पास पक्का मकान है। आज 20 कंपनी के मालिक हैं और MMR  ग्रुप के फाउंडर।

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