New Delhi: जब से यूपीएससी सिविल सेवा के परिणाम घोषित किए गए हैं, कई लोगों की जिंदगी बदल गई है। टॉपर्स की कहानियां देश भर में यूपीएससी के उम्मीदवारों को प्रेरित करती रही हैं और ऐसी ही एक कहानी वैज्ञानिक कार्तिक कंसल की है जिन्होंने अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सभी बाधाओं के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
कमजोरी को ताकत बनाने वाले दुनिया जीत लेते हैं। मेहनत के दम पर क्या कुछ हासिल नहीं किया जा सकता है। ऐसी ही ऊंची उड़ान भरी है, ISRO के वैज्ञानिक कार्तिक कंसल ने। जिन्होंने व्हीलचेयर पर बैठकर आसमान जीत लिया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिक कार्तिक कंसल ने दूसरी बार में यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षाओं में सफलता हासिल की और रैंक 271 हासिल की।
आठ साल की उम्र में, कार्तिक को मस्कुलर डिस्ट्रॉफी का पता चला जहां धीरे-धीरे शरीर के अंग काम करना बंद कर देते हैं। इस बीमारी ने उनके जीवन को पूरी तरह से बदल कर रख दिया। बच्चों के साथ बाहर जाने और खेलने के बजाय, उनका अधिकांश समय बीमारी के प्रभाव को कम करने के लिए उपचार और योग में लगा रहा। लेकिन शारीरिक कमजोरी ने उन्हें अपनी इच्छाशक्ति को मजबूत करने से नहीं रोका। उन्होंने कड़ी मेहनत की और सिविल सेवा परीक्षा में रैंक हासिल की।
2018 में IIT रुड़की से स्नातक करने के बाद, कार्तिक ने GATE और संघ लोक सेवा आयोग इंजीनियरिंग सेवा परीक्षा सहित कई परीक्षाओं को पास किया, लेकिन अपनी शारीरिक अक्षमता के कारण प्लेसमेंट प्राप्त करने में सक्षम नहीं थे। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया कि- मैंने इंजीनियरिंग सेवा परीक्षा के प्रारंभिक परीक्षा में अच्छा किया था, लेकिन जब मुख्य परीक्षा की सूची आई, तो मुझे पता चला कि मैं अपनी बीमारी के कारण किसी भी पद के लिए योग्य नहीं था. मेरे लिए यह एक कठिन दौर था। मानसिक रूप से मैं तैयार था, लेकिन मैं अपनी शारीरिक स्थिति का क्या कर सकता हूं? मेरी पूरी दुनिया बिखर गई थी। हालांकि, मजबूत इरादे और कड़ी मेहनत से उनका सपना साकार हुआ।
#UPSC : इसरो के 25 साल के वैज्ञानिक कार्तिक कंसल ने भरी एक और उूंची उड़ान, IIT से पढ़े, 2 बार यूपीएससी की
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उन्होंने कहा कि- “मेरा मानना है कि इस तरह की परीक्षाओं में खुद से उत्तर लिखना हमेशा सबसे अच्छा होता है। हालांकि यह मेरे लिए मुश्किल था, मैंने तीन महीने तक हर दिन चार घंटे अभ्यास किया ताकि मैं यूपीएससी मेन्स के लिए बैठ सकूं और अपना पेपर लिख सकूं। सप्ताह के दिनों में, मैं सुबह 6 बजे उठता था, सुबह 8 बजे तक पढ़ता था और फिर तैयार होकर ऑफिस के लिए निकल जाता था। लौटने के बाद लगभग शाम 6:30 बजे, मैं 11 बजे तक पढ़ता था। जिस दिन छुट्टी होती मैं अधिक से अधिक पढ़ाई करता था। बचपन से ही उनकी मां ममता गुप्ता हमेशा उनका सबसे बड़ा सहारा रही हैं। उन्होंने कहा कि यह उनकी इच्छा शक्ति के कारण ही था कि सभी बाधाओं से लड़ते हुए अपने सपनों को हासिल करने में सफल रही।
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कार्तिक वर्तमान में आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में इसरो में कार्यरत हैं। प्रशासनिक सेवाओं या राजस्व सेवाओं में आने की उम्मीद है। वह समाज में जो सबसे बड़ा बदलाव लाना चाहते हैं, वह उन लोगों की मानसिकता में है, जो यह सोचते हैं कि किसी भी प्रकार की विकलांगता से ग्रस्त व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता।