किसानों के लिए कितना सही है नया किसान कानून, जानिए सारी बातें

New Delhi: किसान कानून में कुछ खामियां हो सकती हैं लेकिन पूरे कानून पर नजर डालें तो सरकार का इरादा किसानों को लूटने या उनके हितों को नजरअंदाज करने का नहीं हैं। देश के अन्नदाता के हित में जो कुछ भी अच्छा हो सके उसे करना ही चाहिए कानूनों का अध्ययन करें तो पता लगता है कि सरकार के इरादे में कोई कमी नहीं है। व्यापारियों और कृषि उत्पाद के हितों को भी सरकार ने ध्यान में रखा है लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि ये कानून पूरी तरह से पूंजीपतियों के पक्ष में और किसानों के विरोध में हो गए।

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सरकार द्वारा पास किए गए 3 कानून में से सबसे ज्यादा विरोध कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) यानी The Farmers’ Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) कानून का हो रहा है। इस कानून में APMC यानी ऐग्रिकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी जिसे मंडी व्यस्था के रूप में जाना जाता है, इसके एकाधिकार को खत्म करने को लेकर प्रावधान है। पहले किसान किसी दूसरे राज्य की मंडी में अपनी उपज नहीं बेच सकता था, अगर उसे अपनी फसल किसी दूसरे राज्य में बेचनी है तो उसे किसी थोक डीलर से संपर्क करना होता था। अब किसान अपनी फसल को दूसरे राज्यों की मंडियों में भी बेच सकते हैं। इस कानून में सिर्फ इतना ही नहीं है इसके तहत व्यापारियों को खुली छूट दी गई है कि वे किसानों से सीधे फसल को ले सकें। इसके तहत यह संभव है कि व्यापारी किसी राज्य के जिले में या क्षेत्र में अपनी दुकान गोदाम खोल कर बैठ जाएंगे जहां किसान अपनी फसल सीधे बेच पाएंगे। इसमें किसानों और व्यापारियों दोनों का ही लाभ होगा किसानों को अब मंडियों में लगने वाली 10 तरह की फीस, दलालों (आढ़तीयों) के गड़बड़ झाले और कमीशन, मंडी में मौजूद अधिकारियों के भ्रष्टाचार से मुक्ति मिल जाएगी। वहीं व्यापारियों का संबंध सीधे किसानों से होने के कारण उन्हें भी अब कमीशन के पैसे नहीं चुकाने होंगे जिससे उन्हें भी फायदा होगा। मंडियों में व्यापारियों से टैक्स वसूला जाता है और पैसा राज्य सरकार के राजस्व में जाता है। यानी किसान सरकारी मंडी में न जाकर फीस से बच जाएगा और व्यापारी टेक्स से।

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इस कानून में निजी कंपनियों को खुद की मंडी स्थापित करने की भी खुली छूट देनी की बात कही गई है, जिसमें कोई बुराई नहीं है। जैसे हम बाजार से जाकर सब्जियां ले आते हैं, जिस स्टोर पर सब्जी या राशन अच्छा और सस्ता मिलता है, हम वहां से डील करते हैं। यही विकल्प अब किसानों को भी मिल जाएगा। व्यापारियों द्वारा स्थापित मंडी में अब किसान जाएगा चार जगह भाव पता करेगा और जहां सौदा पटेगा वहां अपना माल बैच देगा। लेकिन ये भी सोचने वाली बात है कि अगर किसी फसल का दाम काफी गिर जाता है तो किसान क्या करेंगे या इन व्यापारियों ने या निजी कंपनियों ने फसल की लागत का उचित दाम किसानों को नहीं दिया तो किसान कहां जाएगें। इसका जवाब है MSP, जो कि मंडियों में ही दिया जाता है। व्यापारियों द्वारा नकारे जाने की स्थिति में किसान अपनी फसल सरकारी मंडी में बैचेंगे जहां उन्हें MSP का लाभ मिल सकेगा। सरकार द्वारा लाए गए इस कानून में MSP खत्म करने का जिक्र नहीं है। सरकार किसानों को यकीन दिला रही है कि MSP पहले जैसा ही मिलता रहेगा। यानी किसी भी स्थिति में किसान मार नहीं खाएगा।

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असल में देश में मंडी व्यवस्था की स्थापना किसानों के हितों के लिए की गई थी लेकिन धीरे धीरे इस पर दलालों, व्यापारियों और भ्रष्टाचारियों का कब्जा हो गया। आज हालत ये है कि किसान जब मंडी में अपनी फसल लेकर जाता है तो मेहनत मशक्कत से उगाई गई उसकी फसल का दाम तय करने का भी किसान को अधिकार नहीं होता दलाल और व्यापारियों से सांठ-गांठ रखने वाले उसकी फसल की बोली लगाते हैं, किसान से नहीं पूछा जाता कि वो क्या दाम चाहता है। व्यापारी आपस में मिलकर ऐसा दाम तय करते हैं जिस से उन्हें लाभ होता है और किसानों को नुकसान। परिणाम ये होता है कि दूर से फसल बेचने आए किसान को फसल वापिस ले जाने से अच्छा उसी दाम पर अपनी फसल को बेचना ही सही लगता है।

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अब सवाल है कि विरोध क्यों हो रहा है? पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश ऐसे क्षेत्र हैं जहां से देश में हरित क्रांति आई। यहां फसल भी काफी बढ़िया होती है। किसानों के पास जोतें भी अपेक्षाकृत बड़ी हैं। अनाज ज्यादा मंडियों में लाया जाता है। इसका परिणाम ये हुआ कि यहां मंडी व्यवस्था बहुत पहले से कारगर हो गई। समय के साथ मंडियों में ज्यादा काम की जरूरत पड़ने की वजह से किसानों और अधिकारियों के अलावा बड़ी संख्यां में एजेंटों ने मंडियों में जगह बना ली। इन एजेंटों के संगठन भी बन गए और ये सबसे ज्यादा इन्हीं क्षेत्रों में हैं। अब जब इस कानून के तहत किसान अपनी फसल सरकारी मंडियों के बाहर बेचेेंगे तो मंडियों में काम न होने की वजह से इनके काम पर असर पड़ेगा।

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दूसरा कानून जिसका विरोध हो रहा है वो है कान्ट्रैक्ट फार्मिंग। भारत जैसे देश में जहां ज्यादातर लघु किसान और सीमांत किसान ही हैं यहां कांट्रेक्ट फार्मिंग थोड़ा टेढ़ा सौदा है। हालांकि कानून में ये छूट दी गई है कि किसान अपनी मर्जी से इसे कर पाएंगे। कांट्रेक्ट फार्मिंग के लिए ज्यादातर निजी कंपनियां बड़ी जोत वाले किसानों को ढ़ूंढ़ती हैं। ऐसे में छोटे किसानों के लिए ये कानून बेकार ही है। लेकिन बड़े किसान जिनके पास 10 हेक्टेयर या उससे अधिक जमीन है वो इसका फायदा ले सकते हैं। बड़े किसान जो ज्यादातर पढ़े लिखे होते हैं या फिर अपनी फसल का सौदा करने के लिए वो किसी अकाउंटेंट को रखते हैं ऐसे में व्यापारी या कंपनियां उनसे चालाकी कर पाएं इसकी संभावनाएं कम हैं।

तीसरा कानून है आवश्यक वस्तु (संशोधन) एक्ट 2020 (Essential Commodities (Amendment) इस कानून के लागु हो जाने से किसान के अलावा लोग भी काफी चिंतित हैं। ये कानून व्यापारियों को आवश्यक वस्तुओं जैसे दाल, तिलहन, प्याज और आलू को जितना चाहे खरीद कर उसे अपने पास स्टोर करने की अनुमति देता है। अब ऐसा करने वालों से जुर्माना नहीं वसूला जाएगा। ये सुनने के बाद कोई भी पहली बार में यही कहेगा कि इससे तो व्यापारियों की बल्ले-बल्ले और जनता की बदहाली शुरू हो जाएगी। व्यापारी सारा माल खरीद कर स्टोर कर लेंगे और मनमाने दाम में बेचेंगे। लेकिन ऐसा है नहीं। आज वो दौर नहीं है जब किसी वस्तु की उपज कम हो। कृषि क्षेत्र में आज हम इतने सक्षम हो गए हैं कि देश का पेट भरने के अलावा बड़ी मात्रा में माल निर्यात भी किया जाता है। ये कानून उस समय के लिए ठीक था जब फसलें नहीं हुआ करती थीं और इसका फायदा उठाकर व्यापारी उन्हें स्टोर कर लिया करते थे लेकिन आज वो दौर है जब फसल तो खूब हो जाती है लेकिन उसे खरीदने वाला कोई नहीं होता। इसका ताजा उदाहरण हम टमाटर, प्याज और दाल जैसे उत्पादों के बढ़ते दामों को बना सकते हैं। कभी हम देखते हैं कि प्याज-टमाटर सोने के भाव बिक रहा है तो कभी वही टमाटर-प्याज किसान सड़कों पर बिखेरते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि व्यापारी इन उत्पादों को लिमिट से ज्यादा नहीं खरीद पाते थे जिस वजह से इन फसलों के दाम इतने गिर जाते थे कि किसान इन्हें सड़कों पर फेंकने को मजबूर होता था। अब जब ये सीमा हट जाएगी तो व्यापारी इसे अपनी क्षमता अनुसार खरीद कर स्टोर कर सकेंगे। इससे ये होगा कि अब किसानों को फसल खरीदने से मना नहीं किया जा सकेगा अब उसके कई खरीदार होंगे। इसका दूसरा फायदा ये होगा कि किसान अपनी पूरी फसल एक ही व्यापारी को बेच सकेगा जिससे उसे ज्यादा विकल्प मिल जाएंगे।

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